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सुना तो था

सुना तो था जान है तो जहान है सुनते तो रहे हैं बचपन से पर जान पे यूँ बन आयेगी ऐसा तो कभी सोचा भी ना था उम्मीद पे दुनिया क़ायम है सुनते तो रहे हैं बचपन से पर यूँ टूटेगी उम्मीद सभी ऐसा तो कभी सोचा भी ना था कुदरत के सब बंदे हैं सुनते तो रहे हैं बचपन से पर कुदरत ही खा लेगी...

कुछ कह रहा है कोरोना

कुछ कह रहा है कोरोना कोरोना तो एक बहाना हैमक़सद तो सबक़ सिखलाना हैइंसान जो बनने चला था ख़ुदाउसे वापस राह पे लाना है…कोरोना तो एक बहाना है हो गए थे हम मग़रूर बहुतथे अहंकार की धुन में मस्तमाँ प्रकृति को तड़पाने मेंबिगड़ी औलाद के लक्षण थेजो तोड़ के हर लक्ष्मण...

कोरोना कविता

कोरोना कविता सुबह बन तो रही है दोपहर और दोपहर बन रही है शाम जो जल्द पड़ जाती है स्याह कुछ ही घंटों में और रात आ खड़ी होती हैं जहाँ थी शाम और फिर एक जादूई अन्दाज़ से रात फिर बन रही है सुबह दिन रहें हैं बीत पर समय रुक गया है सबके लिए सांसें तो चल रहीं हैं पर ज़िंदगी थम...

ज़िंदगी बाक़ी है

ज़िंदगी बाक़ी है ज़िंदगी कुछ तो बता क्या है इरादा तेराकुछ तो दे अता पता समझूँ मैं इशारा तेराज़िंदगी कुछ तो बता क्या है इरादा तेरा ….  लगता है सफ़र हुआ है तमाम पर राह तो अभी बाक़ी हैगीत हैं सब आधे अधूरे पर धुन तो अभी बाक़ी हैलगते हैं फूल मुरझाए से पर ख़ुशबू तो...

हिंद पर नाज़ …?

वंदना सिंह२५ मई २०२०, नई दिल्ली जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं …? जिन्हें फ़क्र है हिंद पर वो कहाँ हैं …? हैं सड़कों पे उतरे हुए लाखों इंसाँ हैं कई दिन के भूखे, ये बेबस परेशाँ कई माएँ हैं इनमें लिए छाती पे बिटिया कई माएँ हैं इनमें लिए कोख में बिटिया...

क्यों लगता है…

क्यों लगता है… मुश्किल से सम्भाला था अपने आप को इन पिछले दिनों क्यों लगता है कि फिर वही गुलाबी शाम है क्यों लगता है कि मैंने तुम्हारे लिए दरवाज़ा खोला है …बड़ी मुश्किल से सम्भाला था मुश्किल से सम्भाला था अपने आप को इन पिछले दिनों क्यों लगता है कि तुमने फिर...