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कोरोना कविता

कोरोना कविता सुबह बन तो रही है दोपहर और दोपहर बन रही है शाम जो जल्द पड़ जाती है स्याह कुछ ही घंटों में और रात आ खड़ी होती हैं जहाँ थी शाम और फिर एक जादूई अन्दाज़ से रात फिर बन रही है सुबह दिन रहें हैं बीत पर समय रुक गया है सबके लिए सांसें तो चल रहीं हैं पर ज़िंदगी थम...

ज़िंदगी बाक़ी है

ज़िंदगी बाक़ी है ज़िंदगी कुछ तो बता क्या है इरादा तेराकुछ तो दे अता पता समझूँ मैं इशारा तेराज़िंदगी कुछ तो बता क्या है इरादा तेरा ….  लगता है सफ़र हुआ है तमाम पर राह तो अभी बाक़ी हैगीत हैं सब आधे अधूरे पर धुन तो अभी बाक़ी हैलगते हैं फूल मुरझाए से पर ख़ुशबू तो...