वंदना सिंह
२५ मई २०२०, नई दिल्ली
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
जिन्हें फ़क्र है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
हैं सड़कों पे उतरे हुए लाखों इंसाँ
हैं कई दिन के भूखे, ये बेबस परेशाँ
कई माएँ हैं इनमें लिए छाती पे बिटिया
कई माएँ हैं इनमें लिए कोख में बिटिया
चल रहीं हैं, चल रहीं हैं, चलती ही जा रहीं हैं
और सूरज है कि तप रहा है, तप रहा है, तपता ही जा रहा है
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
जिन्हें फ़क्र है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
है एक नन्हीं सी जान सोई चलते सूटकेस पर
है एक हिम्मतवाली बेटी निकल पड़ी जो साइकिल पर
कोई बैठे हैं पटरी पर – हाँ, रेल की पटरी पर
कोई मसीहा के इंतेज़ार में बस बैठे हैं हाशिए पर
कोई रुक रुक के चल रहा है, कोई चल चल के रुक रहा है
और सूरज है कि तप रहा है, तप रहा है, तपता ही जा रहा है
जिन्हें नाज़ है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
जिन्हें फ़क्र है हिंद पर वो कहाँ हैं …?
Inspired by Sahir Ludhianvi’s song from Pyaasa.