सुना तो था
जान है तो जहान है
सुनते तो रहे हैं बचपन से
पर जान पे यूँ बन आयेगी
ऐसा तो कभी सोचा भी ना था
उम्मीद पे दुनिया क़ायम है
सुनते तो रहे हैं बचपन से
पर यूँ टूटेगी उम्मीद सभी
ऐसा तो कभी सोचा भी ना था
कुदरत के सब बंदे हैं
सुनते तो रहे हैं बचपन से
पर कुदरत ही खा लेगी हमें
ऐसा तो कभी सोचा भी ना था
वंदना सिंह
३० मार्च, नई दिल्ली